एक सवाल
सच क्या है
क्या सिर्फ
एक खोटा सिक्का
या फिर
दिल को बहलाने की
एक उम्मीद
जब सामने आता है
सच तो
झूठ अपनी
जिंदगी जी चुका होता है
और सच
थक कर बूढ़ा हो चुका होता है
अंतिम सांसे गिनता
सच
इतने में ही खुश हो जाता है
कि चलो झूठ बेपर्दा तो हुआ
क्या यही कीमत है
सच की
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