चाँद आया
कुछ सपने लाया
चलों चल कर देखें
कहीं महबूब का सपना न हो
.
वो रोज़ कहते हैं
आज आंऊगा सपने में.
..
मैं रोज़ सपने देखती हूँ
सुबह आ कर बोलते हैं.
.....,,
ट्रैफिक में फंस गया था
आज जरूर आउंगा
और मैं रोज़ मान जाती हूँ
चाँद के आते ही
पलकें मूंद लेती हूँ.
और मैं रोज़ मान जाती हूँ
ReplyDeleteचाँद के आते ही
पलकें मूंद लेती हूँ.
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आभार मीना
Deleteबहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के डायरेक्ट दिल से :).
ReplyDeleteआभार संजय जी
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