Wednesday, March 13, 2013

औरत या गुडिया

गुडिया


गुडिया हैं या औरत

जहाँ बिठा दो

बैठ जाएँगी

उठने की ताकत

कहाँ से लायेंगी

जो कहो

मान जाएँगी

रूठने का अधिकार

कहाँ से पाएंगी

जहाँ भेज दो

चली जायेंगी

अपने दिल की

किसे बतायेंगी

फिर औरत का नाम क्यूँ

गुडिया ही सब कहलाएंगी

 

2 comments:

  1. पूरी की पूरी 15 पंक्तियां बहुत ही भावुक, मर्मस्पर्शी और हृदय को न केवल छू लेने वाली वरन झकझोर देने वाली....मानवता के लिए , सभ्यता का ढ़िंढ़ोरा पीटने वाले और औरत को समानता का अधिकार देने के लिए गला फाड़कर चीखने वाले सफेदपोशों के लिए बड़ा प्रश्न चिन्ह भी. अंतिम दो पंक्तियों ने तो वाकई नयनों को सजल कर दिया " फिर औरत का नाम क्यूं , गुड़िया ही सब कहलाएंगी..." इस यथार्थ को शब्दों में सलीके से बांधने की कामियाब कोशिश के लिए बधाई के हर शब्द कम पड़ जाएंगे. आदरणीया रमाअजयजी सिर्फ साधुवाद,साधुवाद,साधुवाद.

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    1. हार्दिक आभार ऋतुपर्ण जी .....

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