Monday, May 7, 2012

बूड़ी माँ

एक टूटी दीवार
जिसके साये में
बीता बचपन
एक सूखा हुआ पेड़
जिसकी घनी छाया में
प्यारे खेल खेले
एक मुरझाया हुआ फूल
जिसकी खूशबू से
महका जीवन सारा
एक लंगड़ा घोड़ा
जिसने सिखाया
जिंदगी की दौड़ जीतना
खांसी की बेसुरी आवाजे
जिसकी मीठी बोली ने
सुनाई कितनी लोरीयाँ
कांपती लड़खड़ाती टांगे
जिनके सहारे ने
कदमो को चलना सिखाया
दवाईयों की दुकान
जो थी कभी
ताकत की दवाई
क्या कभी सोचा है
अगर वो दीवार न होती
अगर वो पेड़ न होता
अगर वो फूल न होता
अगर वो घोड़ा न होता
अगर वो ताकत की दवा न होती
कैसे बड़े होते
कैसे सपने देखते
कैसे खिलता जीवन सारा
कैसे जिंदगी की दौड़ जीतते
लेकिन ये सब करनेवाली कौन है
वो है हमारी बूड़ी माँ......
लेकिन आज वो
इतनी अकेली क्यों
इतनी उदास क्यों
इतनी बीमार क्यों
इतनी उपेक्षित क्यों



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