उमंगो पर धुंध और
यादो पर कोहरा छा गया
इतनी भी क्या मजबूरी
कि रिशतो में ठंडापन आ गया
कब छटेगी ये दूरीयों की धुंध
कब निकलेगा उम्मीदो का सूरज
इस इंतजार में तो दम भी
निकलने को आ गया
और मत देर लगाओ
और मत इंतजार करवाओ
कहीं उम्मीदे भी ठंडी हो गई तो
अरमान भी मर जाएंगे
फिर लाख निकले सूरज
हम पलट कर नहीं आएंगे
हमारे इंतजार से ही तो तू है
सोच लो अब दम निकला जाता है
उम्मीदो का सूरज अब तक नही आया
चलते हैं तेरी दुनिया से अब
रिशतो का ठंडापन अब निगलने आ गया
यादो पर कोहरा छा गया
इतनी भी क्या मजबूरी
कि रिशतो में ठंडापन आ गया
कब छटेगी ये दूरीयों की धुंध
कब निकलेगा उम्मीदो का सूरज
इस इंतजार में तो दम भी
निकलने को आ गया
और मत देर लगाओ
और मत इंतजार करवाओ
कहीं उम्मीदे भी ठंडी हो गई तो
अरमान भी मर जाएंगे
फिर लाख निकले सूरज
हम पलट कर नहीं आएंगे
हमारे इंतजार से ही तो तू है
सोच लो अब दम निकला जाता है
उम्मीदो का सूरज अब तक नही आया
चलते हैं तेरी दुनिया से अब
रिशतो का ठंडापन अब निगलने आ गया
kya baat ,koi shabd hi nahi mere paas ........
ReplyDeletetumhara kuchh na kehna ....bahut kuchh keh gaya sakhi....
Deleteबहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार
DeleteBeautifully expressed, Rama. Each word has a very deep meaning.
ReplyDeleteThank you very much sham ji
Deletenice creation
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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