शकुतला |
बिंदिया भी लगायी उम्मीद की
पायल भी पहनी इंतज़ार भरी
चूडियाँ भी पहनी सपनो की
महावर भी लगायी सुहाग वाली
आईना भी देखा तुम्हारी तस्वीर का
देखो झुमके भी पहने हैं प्यार भरे
क्या ये मेरा श्रृंगार नहीं देखोगे
क्या ये इंतज़ार कभी रंग नहीं लाएगा
क्या मेरा प्यार तुम्हे कभी याद नहीं आएगा
क्या मै शकुंतला बन कर रह जाउंगी
क्या तुम भी दुष्यंत बन गए हो
मेरे पास तुम्हारे प्यार की अंगूठी है
क्या उसे पहचान पाओगे तुम
कब याद आएगी तुम्हे मेरी
कब लेकर जाओगे मेरी डोली
कब तक यूँ ही सजती रहूंगी मै
कब तक इंतज़ार करुँगी मै
अब सब हँसते हैं मेरे श्रृंगार पर
इसका मान रख लो अब
देखो महावर के रंग सुख चले हैं
पायल के घुंघरू भी टूटने लगे हैं
बिंदिया भी फीकी हो चली है
आईने पर धुल जम गयी उम्मीदों की
झुमको की चमक धुंधली हो हो गयी
मेरे दुष्यंत अब तो पहचानो
मेरे प्यार की अंगूठी को
ले जाओ अपनी शकुंतला को
तुम्हारे इंतज़ार में बैठी है अब तक
तुम्हारी शकुंतला
अंतर्सम्वेदना से निकले शब्द लगता है बोल रहे हैं - खुद की ये चार पंक्तियों की याद आयी -
ReplyDeleteकई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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हार्दिक आभार श्यामल जी
Deleteमर्मस्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteहन्य्वाद रीता जी ......
Delete... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार संजय जी ,,,,,आप का ब्लॉग पर आना .....
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