माँ तुम बहुत याद आती हो
तुम्हारा डांटना मुझे
मेरा रूठ जाना तुम से
फिर घी सक्कर की रोटी
वो चूरी बना कर खिलाना
और कहानी सुनाते सुनाते
चुपके से मना लेना मुझे
माँ नहीं भूलता वो आँगन
जहाँ कई गड्डे खोद कर चीज़े छुपाना
तुम्हारे कान उमेठ देने पर
गुस्से से मूंह सुजाना और
बस उंगली के इशारे से बताना तुम्हे
माँ नहीं भूलती वो रोटी तुम्हारी
चने की दाल वाली
जो सिर्फ मेरे लिए बनाती थी तुम
मुझे मनाने के लिए
कितने जतन उठाती थी तुम
जब मै धुप में खेलती थी
कितना नाराज़ होती थी तुम
तब भी मै रूठ जाती थी
सोचती माँ क्यों खेलने नहीं देती
न पता था तब मुझे
दुनिया की गरम हवा से बचाती थी तुम
अब तो खुद ही रूठना है
खुद ही मान जाना है
गरम हवा चाहे लाख लगे
अपना फ़र्ज़ हर हाल में निभाना है
खुद ही आंसू पौंछना है
खुद ही रोटी भी खाना है
तुम बहुत याद आती हो माँ ...........
तुम्हारा डांटना मुझे
मेरा रूठ जाना तुम से
फिर घी सक्कर की रोटी
वो चूरी बना कर खिलाना
और कहानी सुनाते सुनाते
चुपके से मना लेना मुझे
माँ नहीं भूलता वो आँगन
जहाँ कई गड्डे खोद कर चीज़े छुपाना
तुम्हारे कान उमेठ देने पर
गुस्से से मूंह सुजाना और
बस उंगली के इशारे से बताना तुम्हे
माँ नहीं भूलती वो रोटी तुम्हारी
चने की दाल वाली
जो सिर्फ मेरे लिए बनाती थी तुम
मुझे मनाने के लिए
कितने जतन उठाती थी तुम
जब मै धुप में खेलती थी
कितना नाराज़ होती थी तुम
तब भी मै रूठ जाती थी
सोचती माँ क्यों खेलने नहीं देती
न पता था तब मुझे
दुनिया की गरम हवा से बचाती थी तुम
अब तो खुद ही रूठना है
खुद ही मान जाना है
गरम हवा चाहे लाख लगे
अपना फ़र्ज़ हर हाल में निभाना है
खुद ही आंसू पौंछना है
खुद ही रोटी भी खाना है
तुम बहुत याद आती हो माँ ...........
Maa tum sach me bahut yaad aati hu.......:(
ReplyDeleteBahut hi man bhawan kavita hai.......
माँ चीज़ ही ऐसी है गौरिका
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