Sunday, May 6, 2012

बचपन का चाँद

आज चाँद को सब ने देखा
बस मुझे ही नज़र नही आया
जब कोशिश करती उसे देखने की
बचपन नज़र आ जाता था
तब कैसे भागते थे छत पर
ये पूर्णिमा के चाँद का गोला
उसकी सुनहरी चाँदनी की छटा
उफ कैसे पागल कर देती थी
सब बच्चों में होड़ लग जाती थी
कौन इस चाँद को पहले देखेगा
न माँ की आवाज़े सुनाई देती
न बाबू जी की फटकार का डर
अब कहाँ है वो सब कुछ
बच्चे हाथ पकड़ कर घसीटते
तुम्हारी जोर से आती आवाजे
चली गई छत पर घिसटते हुए
आखों में तो आंसू भरे थे यादो के
कानो मे माँ बाबूजी की आवाजे
कुछ नज़र नही आया सच में
लेकिन मुस्कुराते हुए छत से आ गई
काश कोई कोना मिल जाता मुझे
आंसू तो पोंछ लेती अपने ढंग से
मन में झांकती बचपन की यादें
कानो मे गूंजती वो सब आवाजे
कहां छुपाऊं इन सब को मैं
बच्चे कहते हैं कम्पयूटर मे सेव होता है
क्या ये सब भी सेव कर सकते हैं
किससे पूछूं हसंेगे सब मुझ पर
लेकिन मुझे ये करना ही है सेव
हंसने दो सबको मुझ अनपड़ पर
लेकिन जब दिल चाहेगा देख तो लूंगी
कितना अच्छा लगेगा उन सब को देख कर
फिर चिड़ाऊंगी सब को दिखा कर
हे भगवान कोई चमत्कार कर दो न
वो बचपन का चाँद सेव कर दो न

12 comments:

  1. काश कोई कोना मिल जाता मुझे
    आंसू तो पोंछ लेती अपने ढंग से
    मन में झांकती बचपन की यादें........मुझे भी बहुत कुछ याद आया .......

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  2. " हे भगवान कोई चमत्कार कर दो न
    वो बचपन का चाँद 'सेव' कर दो न !"
    बहुत ही भावपूर्ण और भाव-विह्वल कर देने वाली कविता है! पढ़ते-पढ़ते मन कब बचपन में चला गया पता ही न चला । उधर 'बचपन को 'सेव' करने की अधीर प्रार्थना थी और इधर फिर एक बार फिर-फिर बार-बार कविता के एक-एक शब्द में उतर जाने की अधीरता !
    " काश कोई कोना मिल जाता मुझे
    आँसू तो पोंछ लेती अपने ढंग से..."
    ये पंक्तियाँ तो भावुक किए हुए हैं अभी भी, यह टिप्पणी लिखते हुए भी !
    बधाई Ramaajay Sharma जी उत्कृष्ट सृजन के लिए !

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    1. Hardik dhanywad ashwini ji......itni gambheerta se padne or samjhna ka......

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  3. मन में झांकती बचपन की यादें....wah !

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  4. bahut bhaavnaatmak chitran,
    sunder rachna, sunder abhivyakti.
    Badhai.

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  5. बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ !
    आभार !

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  6. समय मिले तो मेरे ब्लॉग आदत मुस्कुराने की पर भी पधारे और अपने अमूल्य विचार ज़रूर दें .....!!!धन्यवाद
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in

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    1. आभार संजय जी ....आप के ब्लॉग पर आती रहती हूँ ....

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