Sunday, April 22, 2012

मेरे वो ........

मैंने उन्हें इक दुकान में देखा और दिल बस .....उन्हें अपनाने की कसम खायी और घर लौट आई ,माँ को एक दिन अपना राजदार बनाया .....ताकि वो पापा को मना सकें ......पापा कब मानाने वाले थे .....और मै कहाँ हारने वाली थी ......बस लग गयी पापा की सेवा में .......वो दिन कहे  तो दिन कहू ...वो रात कहे तो रात ........एक दिन उन्हें मुझ पर तरस आ ही गया ......और उस दिन .....कोई नहीं समझेगा मै कितनी खुश थी .......और एक दिन .......पापा अचानक उन्हें घर ले आये .......मै ख़ुशी से दीवानी हो गयी थी .......बस अब तो जहाँ मै .....वहां वो .....एक पल को भी उन्हें अपने से जुदा नहीं होने देती मै .......शायद इतनी खुश कभी नहीं रही होवुंगी मै ......जितनी तब थी ........लेकिन कहते हैं की कभी कभी खुद की ही नज़र लग जाती है ......मेरे साथ भी शायद यही हुआ .........तकदीर में शायद जियादा साथ नहीं था हमारा ........एक दिन मै उनके साथ मंदिर गयी .......वो बहार ही रहे ......मै अंदर चली गयी दर्शन करने ..................बहार आई तो देखा ............वो नहीं थे ...........बहुत ढूंडा उन्हें ........सब से पूछा ......पर उनका कुछ पता नहीं चला ......मै बहुत ही उदास मन से रोते हुए घर चली आई ........आज भी नज़रें उन्हें ढूँढती हैं .........क्या आप मेरी मदद करेंगे उन्हें ढूँढने में .......सच आप की सदा आभारी रहूंगी .............वो हैं ........मेरे पिंक जूते........जो बहुत ही महेंगे थे और इतनी मिन्नतो के बाद पापा ने दिलवाए थे.......वो खो गए ........कहीं मिले तो जरुर बताना मुझे ......

9 comments:

  1. अभी से खोजना शुरू करता हूँ - अगर मिल गए तो अवश्य सूचित करूँगा

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  2. अरे अभी भी नहीं मिले क्या .........वो तो मेरे ही पास है अभी भी .......पर आपने बहुत मजेदार लिखा है रमा सखी ...

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    1. हा हा हा ..... हार्दिक धन्यवाद उपासना सखी....... मुझे झलक तो दिखा दिजीऐ .. उनकी....

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  3. hahahahahahahaha......बढिया हैं जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद अंजू जी... आपने सराहा .. बहुत अच्छा लगा

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  4. मैंने देखा नन्ही परी के पैरों में☺☺☺

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  5. मैंने देखा नन्ही परी के पैरों में☺☺☺

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