Sunday, April 1, 2012

परेशानी

आज दिल में इक बात आई सोचा आप सब से भी बाँट लूँ , देखूं आप के क्या विचार हैं, मैं अपनी सखी से फोन पर बात कर रही थी और बात करते करते ही मैं उलझ सी गयी कुछ समझ नही आया , कि एक औरत जिसका चुटकुलो मे मज़ाक उड़ाते हैं, ससुराल मे भी हर किसी का निशाना वोही होती है घर हो या बाहर हर जगह उसे ही नोक पर रखते हैं क्या सच मे वो इतनी गयी गुज़री है....
दिल ने कहा.. शादी से पहले तक तो बस पड़ाई और माँ बाप भाई बहनो का प्यार ही जिदंगी मान कर चलती हुई एक लड़की शादी के बाद अचानक की उसका सर्वस्व बदल जाता है, उसे समझ भी नही आ पाता कुछ और उससे सब की बड़ी बड़ी उम्मीदें जुड़ जाती हैं, उसका परेशान होना बहुत ही वाजिब सी बात है लेकिन वो परेशानी किसी को क्या और कैसे बताए, घर मे या कहीं भी अकली बैठ कर अपने मन को समझाती है कि ये परेशानी बस कुछ समय की है , जैसे जैसे उसे परिवार के बारे में समझ आएगा ये परेशानी दूर हो जाएगी और वो अपने दिल को समझा कर इसी प्रयत्न में जुट जाती है कि सब को जल्द से जल्द समझ सके ताकि किसी को परेशानी ना हो और न ही शिकायत , जल्द ही वो अपने लक्ष्य तक पहुँच जाती है कि उसे पता चलता है वो अब माँ बनने वाली है , घर मे एक बार फिर खुशी की लहर दौड़ जाती है, वो भी बहुत खुश होती है लेकिन अंदर ही अंदर शरीर मे हो रहे परिवर्तन से फिर परेशान हो जाती है , अब घर के साथ साथ उसे आने वाले मेहमान का भी खयाल रखना है, वो फिर से कमर कस लेती है कि कुछ ही समय की बात है,और अपने अदंर होने वाले परिवर्तन और परेशानियो को किसी से नही कहती , धीरे धीरे जैसे समय सरकता है तबीयत बिगड़ती है , तो उसे उस समय का बेसबरी से इंतज़ार होता है जब उसकी सब परेशानियाँ खत्म होंगी और नया मेहमान आ जाता है , लेकिन ये क्या परेशानियों ने अपना रूप बदला है अपना गई नही, अब बच्चे के हर दुख सुख में वो ही तो है क्योंकि वो माँ है, अब फिर से एक बार कमर कसती है और जिंदगी के मैदान मे आ जाती है , बच्चा बड़ा होता है तो दिल में फिर आता है चलो अब स्कूल जाएगा तो उसे कुछ राहत मिलेगी , लेकिन ये क्या परेशानियां एक बार फिर से रूप बदल कर उसके सामने आ जाती हैं , अब परेशान है कि बच्चे की पढ़ाई ठीक हो , कोई कमी न रहे, उस का स्वास्थ ठीक रहे और नित नई परेशानियो से वो झूझती रहती है, बच्चा कब बड़ा हो गया और इतना समय कब और कैसे निकल गया उसे पता ही नही चलता , फिर एक बार परेशानियाँ अपना रूप बदलती हैं अब बेटी के विवाह की और बेटे की नौकरी की चिंता सताने लगती है, राम राम कर के इन दोनो कामो को वो पूरा करती है , अब बेटे की नौकरी भी लग गई , बेटी की शादी भी हो गई , जैसे ही वो कमर सीधी करने लगती है कि बेटी के ससुराल से कोई न कोई समाचार आकर उसे फिर से परेशानी मे घसीटने लगता है, ये क्या बेटा भी शादी कर आ जाता है ,वो दौड़ी दौड़ी बहू का स्वागत करती है और मन ही मन प्रसन्न होती है कि अब तो पक्का सब परेशानियाँ खत्म लेकिन क्या ऐसा हो पाता है क्या,......
बस दिल को यही बाते कचोटती रही कि जब इतना सब करने और सहने पर भी हर जगह मज़ाक और बातो तानो का शिकार एक औरत ही क्यों होती है , चुटकलो तक मे यही दर्शाते हैं कि मर्द तो बेचारा है पत्नी से डरने वाली भीगी बिल्ली है औरत तानाशाह है , क्या वास्तव में ऐसा है या कभी ऐसा होगा..............

4 comments: