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Sunday, November 24, 2013

अनोखी सुबह




सुनहरी धूप , धुंध को चीरती हुई

ठंडी हवा, चिड़ियों की चहचहाहट

हवा चीरती हुई सी तन को 

मन पुलकित सा हो रहा है

सब स्वप्न है या हकीकत

काश वक्त थम जाये यहीं

ये सुबहा तन मन में बस जाये

पत्तो की सरसराहट कुछ कहती सी

आत्मा इस सुबह में बसती हुई सी

अनोखी सुबह , अलौकिक नज़ारा

बस मन को पंख लग जायें

और मैं परिंदे की तरह उड़ती फिरूं

किसी पिंजरे की मैना बन कर नही

इक आज़ाद चिड़िया बन कर

काश ये खाब सच हो जाये

काश.......

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