दिल की बातें
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कठपुतली
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Thursday, August 30, 2012
आंसू और आहें
आंसू
अब तो आंसू भी पराये हो गये
हम से
आँखों से गिरते हैं और
गिरते चले जाते हैं
ये भी पास नहीं रुकते
किसी को क्या कहे
जब अपने आंसू ही
ऐसा दगा करते हैं
आहे कब रूकती हैं
सीने के अंदर
जब अपने ही बेवफा हैं
तो किसी और से कैसा शिकवा
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