Thursday, October 24, 2013

आज का जीवन

घर

कच्चे घरो के रिश्ते कितने पक्के होते थे

आज पक्के घर हैं रिश्ते कच्चे हो गए

पहले बंद दरवाज़े राज़ छुपाये होते थे

आज हर घर बंद है लेकिन राज़ खुले हैं

पहले खिडकियों पर परदे थे

आज पर्दों का रिवाज़ ही न रहा

पहले खुद से भी राज़ छुपाते थे

आज सब बाते नेट पर होती हैं

कोई राज़ नहीं रहा अब

सब सरेआम हो गया है

ना वो दर्द रहा न वो दर्द मंद रहे

हर बात का किस्सा आम हो गया

सुख कम हो  गए

दुःख  बेचारा सरेआम हो गया

जिधर देखो दर्द ही दर्द बिखरा है

मुस्कुराहट भी नकली हो गयी

नेट के बिना हर काम रुक गया है

अब तो जीना भी नेट का गुलाम हो गया

कच्चे घरो का काम तमाम हो गया

पक्के घरो में जीना हराम हो गया

22 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 26/10/2013 को बच्चों को अपना हक़ छोड़ना सिखाना चाहिए..( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 035 )
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  2. वक्त तो बदला हैं ....विकासोन्मुखी हो...
    “अजेय-असीम{Unlimited Potential}”

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  3. सही कहा आपने .. आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल रविवार दिनांक 27/10/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है .. कृपया पधारें औरों को भी पढ़ें |

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  4. सही कहा आपने .. आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल रविवार दिनांक 27/10/2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है .. कृपया पधारें औरों को भी पढ़ें |

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  5. वक्त ने ली करवट और इंसान खा गया मात ! आया संवेदनहीन बदलावट!
    नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )

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  6. परिवर्तन निरंतरता का प्रतीक है।

    आता है जो नेत्र-पंथ-गत वह भी कल मिट जाएगा
    समय बदलता रहता है समय बदलता जाएगा


    निश्चित ही परिवर्तन के साथ सुविधाओं के अम्बार लग गए हैं किन्तु आत्मिक असंतोष में बढ़ोत्तरी भी हुयी है। ऐसे ही तथ्यों को प्रतिपादित करती हुयी रचना के लिए हृदय से आभार। धन्यवाद।

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  7. अच्छा लिखते हो ...

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